जगन्नाथ रथयात्रा - रथ यात्रा पर निबंध | Rath Yatra Par Nibandh

श्री जगन्नाथ भगवान की नगरी जगन्नाथपुरी में हर साल धूमधाम से रथयात्रा का आयोजन होता है। देश के तमाम हिस्सों से लोगों का जनसैलाब वहां उमड़ता है। इस लेख के जरिए आपको जगन्नाथ रथ यात्रा पर निबंध (Rath Yatra Par Nibandh) बताया गया है इसे पढ़कर आप रथयात्रा का महत्व और इसे कैसे मनाया जाता है? इसकी जानकारी हिंदी भाषा में लिखी गई है।

जगन्नाथ रथ यात्रा पर निबंध | Jagannath Rath Yatra Par Nibandh

जगन्नाथ रथ यात्रा पर निबंध - Jagannath Rath Yatra Par Nibandh

प्रस्तावना

रथयात्रा (Rath Yatra) भारत में मनाए जाने वाला प्रमुख हिंदू त्योहारों में से एक है इस मौके पर लाखों श्रद्धालु एक स्थान पर जुट कर रथ यात्रा का मनोरम दृश्य देखते हैं। रथ में भगवान विष्णु के अवतार श्री जगन्नाथ भगवान को विराजमान कर मंदिर से प्रत्येक वर्ष जून या जुलाई महीने में रथ यात्रा निकाली जाती है।

वैसे तो भारत के छोटे और बड़े शहरों में रथ यात्रा का आयोजन रहता है जहां सब मिलकर इसे उत्सव की तरह मनाते हैं मेले जैसा माहौल इस दिन देखने को मिलता है। कई जगह जगन्नाथ प्रभु के मंदिर हैं लेकिन भारत में सबसे बड़ा जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में स्थित है जहां पर हर साल भक्तजन लाखों की संख्या में एकत्रित होकर रथ यात्रा का मनोरम दृश्य देखते हैं।

पुरी का जगन्नाथ मंदिर बहुत विख्यात है इस कारण वहां के यात्रा का टेलीविजन पर लाइव प्रसारण होता है इससे जो लोग वहां नहीं जा पाते वे घर बैठे वहां का अदभुद नजारा टीवी पर देख पाते हैं। ये रथ उत्सव इतना भव्य रूप से आयोजित किया जाता है कि हर व्यक्ति वहां जाना चाहता है यह समस्त श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है हर साल उड़ीसा के पुरी शहर में लाखों लोग रथ उत्सव में सम्मिलित होते हैं।

जगन्नाथ पुरी के रथ यात्रा की शुरुआत 

जगन्नाथ रथ यात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भारत के विभिन्न हिस्सों में निकाली जाती है। प्रमुख रूप से पुरी का रथ यात्रा बहुत प्रचित उत्सव है यहां हर साल श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

विभिन्न हिस्सों में रथ यात्रा के मौके पर समितियों द्वारा चंदा एकत्र करके भंडारे का आयोजन कर श्रद्धालुओं को भोजन कराया जाता है इसमें हर कोई सहयोग कर इस अनुष्ठान को सफल बनाने में योगदान देता है।

इस उत्सव को प्राचीन समय से मनाया जा रहा है आजकल जहां रथ निकली जाती है वहां मेले लगते हैं लोग यहां आकर खरीदी करते हैं रथ यात्रा देखते हैं। इस मौके पर रामलीला नाटक या गाना गाने का कार्यक्रम भी रखा जाता है।

यह त्योहार उड़ीसा के पुरी के अलावा भारत के अलग-अलग शहरों में धूमधाम से मनाए जाते हैं इस दिन लोग जगन्नाथ भगवान के दर्शन के लिए सुबह से मंदिर जाना शुरू कर देते हैं क्योंकि मंदिर में लंबी लाइन लगी रहती है सब कोई बारी-बारी से उनकी पूजा करते हैं।

पूरी में रथ यात्रा की शुरुआत गंगा राजवंश ने सन् 1150 इस्वी में किया था जिसे पुरी की रथयात्रा नाम से प्रसिद्धि मिली। आज पुरी को प्रचलित रथ उत्सव वाले स्थान में जाना जाता है। यहां पर विदेशों से भी लोग आकर इस अदभुद नजारे का आनंद लेते हैं।

रथयात्रा क्यों मनाया जाता है?

रथयात्रा मनाए जाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं एवं मान्यताएं प्रचलित हैं। सबसे प्रचलित मान्यता है की एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे द्वारिका नगरी घूमने की इच्छा जताई इसके बाद उन्होंने रथ में बैठकर सुभद्रा को द्वारिका भ्रमण कराया। तब से हर साल इसी दिन माता सुभद्रा के द्वारिका दर्शन को याद करते हुए जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाती है। इस अवसर पर तीन रथ तैयार किए जाते हैं जिसमें सबसे पहला रथ बलभद्र यानी बलराम का दूसरा रथ जगन्नाथ यानी श्री कृष्ण का और तीसरा रथ उनके बहन सुभद्रा का होता है।

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा की कहानी -

रथयात्रा से जुड़ी कई कथाएं हैं जिनमें से एक कथा अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न अपने परिवार के साथ नीलांचल सागर के समीप रहते थे जो इस समय उड़ीसा क्षेत्र में पड़ता है। एक बार राजा इंद्रद्युम्न को समुद्र में तैरता हुआ बड़ा लकड़ी नजर आता है। उस लकड़ी को समुद्र से निकालने के बाद वे विचार करते हैं उस लकड़ी से भगवान जगदीश जी का मूर्ति बनाया जाए।

उसी दौरान वहां पर भगवान विश्वकर्मा बूढ़े बढ़ई का रूप धारण करके प्रकट हुए और वे उस लकड़ी से मूर्ति बनाने के लिए राजी हो गए परंतु उन्होंने सर्त रखी की वे उस मूर्ति को बंद कमरे में बनाएंगे और मूर्ति निर्माण के दौरान कोई वहां नहीं आएगा। राजा में शर्त माना उसके बाद उन्होंने ने मूर्ति बनाना शुरू कर दिया।

इसी तरह कई दिन बीत गए महारानी के मन में शंका हुआ की कहीं वो बुजुर्ग बढ़ई इतने दिन भूखे रहने से मर तो नहीं गए इसे देखने के लिए उन्होंने वो दरवाजा खोल दिया और देखा तो वहां कोई नहीं था लेकिन लकड़ी से बनाया गया अर्धनिर्मित मूर्तियां जरूर मिला जिसे बूढ़े आदमी का रूप धारण करके देवों के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था। वह मूर्ति भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा तथा कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी की मूर्तिया थी। कहते हैं की जहां पर विश्वकर्मा ने इन मूर्तियों का निर्माण किया वहीं आज श्रीजगन्नाथ जी का मंदिर स्थित है।

अर्थनिर्मित अर्थात आधा बना हुआ मूर्ति देख राजा और रानी को दुख हुआ लेकिन उसी समय आकाशवाणी हुई है की दुःखी ना हो मैं इसी स्वरूप में रहना चाहता हूं इसकी मंदिर में स्थापना करवा दो। इसलिए अभी भी वही अर्थनिर्मित मूर्तियां पुरी के जगन्नाथ मंदिर में विराजमान है, इसकी हर साल रथयात्रा के मौके पर पूजा होती है रथ यात्रा के समय तीनों मूर्ति को अलग-अलग रथ में विराजित करके यात्रा निकाली जाती है इस मनोरम दृश्य को दूर - दराज से श्रद्धालु देखने आते हैं।

रथ यात्रा कैसे मनाया जाता है?

सबसे पहले जगन्नाथ पुरी मंदिर से रथ यात्रा का शुभारंभ हुआ। पहले राजाओं के वशंजो द्वारा पारंपरिक विधि विधान पूर्वक सोने के हत्थे वाले झाड़ू से रथ के सामने झाड़ू लगाकर उसके बाद मंत्र जाप करके रथ यात्रा को शुरू किया जाता है। रथयात्रा आरंभ होते ही सैंकड़ों लोग रथ की रस्सी खींचते हैं। लोगों की बड़ी इच्छा रहती है की भगवान जगन्नाथ के रथ का मात्र रस्सी छू लें। ढोल - नगाड़े और वाद्ययंत्र बजते हैं लोग रथ के दर्शन के लिए घरों के छत पे जा खड़े होते हैं। रथयात्रा में तीन रथ निकाली जाती है सबसे आगे बलभद्र अर्थात बलराम जी का रथ चलाया जाता है। इनके बाद सुभद्रा जी का रथ और अंत में भगवान जगन्नाथ जी का रथ चलता है।

कहते हैं रथ खींचने से मानव मोक्ष को प्राप्त करता है। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओ के चेहरे पर भक्तिमय मुस्कान दिखता है श्रद्धा भाव से लोग रथ के मोटे - मोटे रस्सी खींचते हैं। इस रथ को गुंदेचा मंदिर तक पहुंचाकर यात्रा पूरी की जाती है।

भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचकर जहां ले जाया जाता है वह उनके मौसी का घर होता है जहां पर भगवान एक सप्ताह के अवधि तक निवास कर आषाढ़ शुक्ल दशमी को घर वापसी करते हैं। उस दिन रथ वापसी यात्रा निकलती है इस दिन भी मेले का माहौल और लोगों की भीड़ उमड़ती है रथ खींचने के लिए इस दिन भी लोग लालायित रहते हैं।

वापसी रथयात्रा को बहुड़ा यात्रा या कुछ जगहों पर स्थानीय बोलचाल में घूरती रथ कहा जाता है। रथयात्रा को सूर्यास्त के पूर्व गंतव्य स्थल तक सफलतापूर्वक पहुंचाने की प्रथा है। रथ वापसी के पश्चात देव प्रतिमाओं की पूजा-पाठ और मंत्र उच्चारण के बाद पुनः मंदिर से स्थापित कर दिया जाता है। इस तरह जगन्नाथ रथयात्रा के कार्यक्रम का समापन किया जाता है। यह उत्सव सबके लिए आकर्षण का केंद्र है इसलिए जो रथयात्रा के कार्यक्रम में भाग लेता है वह दुबारा इसका हिस्सा बनना चाहता है।

रथ यात्रा का महत्व - Importance of Rath Yatra in Hindi

रथ यात्रा जिसे रथ जात्रा भी कहते हैं यह हिंदू रथ उत्सव प्रतिवर्ष जून या जुलाई के महीने में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। आषाढ़ के चंद्र मास के शुक्ल पक्ष में आयोजित इस भव्य रथ यात्रा में लाखों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के दर्शन मात्र के लिए उत्कण्ठित रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार देवता जगन्नाथ की रथयात्रा का कार्यक्रम दस दोनों तक चलता है। इसे भारत के प्रमुख उत्सवों में जाना जाता है।

धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता अनुसार श्री जगन्नाथ रथ यात्रा सौ यज्ञ करने के समान है इसलिए हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए इस पर्व का बहुत बड़ा महत्व है। इस त्योहार को भारत के अलग अलग राज्यों के शहरों में हर साल मनाने की प्रथा है। इस उत्सव में सहयोग देने तथा हिस्सा लेने हेतु लोग बढ़-चढ़कर आगे आते हैं।

भारत में इस मौके पर सबसे बड़ा जनसैलाब उड़ीसा के पुरी शहर में रथयात्रा के अवसर पर देखा जा सकता है। अलग-अलग राज्यों और महानगरों से लोगों की बड़ी संख्या रथ यात्रा में शामिल होने आते हैं सैंकड़ों लोग रथ के अवसर पर रस्सी खींचकर रथ चलाने में सहयोग करते हैं। मान्यता है की रथयात्रा में रथ खींचने से भक्तगणों के कष्टों का निवारण होता है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।

पुरी में रथयात्रा के अवसर पर भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना करके उनका महाप्रसाद श्रद्धालुओं में बांटे जाते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु रथयात्रा में आते हैं और अपने तथा परिजनों के लिए प्रार्थना कर जगन्नाथ भगवान का आशीर्वाद लेते हैं।

उपसंहार -

यह बहुत प्राचीन और सार्वजनिक पर्व है जिसे सब मिलजुलकर मनाते हैं। आधुनिक संसाधनों के चलते आज टीवी पर जगन्नाथ पुरी का लाइव प्रसारण देखा जा सकता है। पहले आने-जाते के लिए संसाधनों की कमी के चलते दूर से लोग इस यात्रा को देखने नहीं आ पाते थे लेकिन अब रथयात्रा में शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से गाड़ियों में आते हैं। खूब भीड़ लगती है जिसके चलते भगदड़ मचने से कई दुर्घटनाएं भी हो जाती है। इसलिए सुरक्षा इंतजामों पर बहुत ध्यान दिया जाता है। पुलिस तैनात किए जाते हैं ताकि भीड़ वाले जगह पर चोरी चकरी ना हो पाए। यह उत्सव सबके लिए है हर कोई रथयात्रा में शामिल हो सकता है वहां का वातावरण सबके मन को भाता है हर व्यक्ति को जीवन में एक बार इस भव्य उत्सव में जरूर जाना चाहिए।

जगन्नाथ रथ यात्रा पर निबंध 10 लाइन - 10 Lines On Rath Yatra In Hindi

  1. जगन्नाथ रथ यात्रा को हिंदू धर्म में आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष को उत्सव की तरह मनाया जाता है।
  2. उड़ीसा राज्य के पुरी नगर में रथयात्रा का भव्य आयोजन होता है जहां लाखों की संख्या में लोग इक्कट्ठे होते हैं।
  3. यात्रा के लिए तीन रथ निकाले जाते हैं जिसमें पहला जगन्नाथ भगवान का, दूसरा बलभद्र और तीसरा रथ देवी सुभद्रा का रहता है।
  4. रथ को लकड़ी से बनाकर उसे फूल आदि से सजाया जाता है। रथ खींचने के लिए रथ के आगे मोटी रस्सी बांध दी जाती है।
  5. रथयात्रा शुरू करने के लिए उस रस्सी को खींचा जाता है मान्यता है की रथ खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए श्रद्धालु रथ खींचने हेतु लालायित रहते हैं।
  6. जगन्नाथ मंदिर से पूजा अर्चना के बाद रथयात्रा निकलती है जो गुंडचा मंदिर तक जाती है। गुंडचा मंदिर पहुंचकर यात्रा पूर्ण होता है।
  7. गुंडचा मंदिर पहुंचने के बाद भगवान वहां सात दिनों तक ठहरते हैं उसके बाद फिर से घर लौट आते हैं। यह त्योहार 10 दिनों का होता है। 
  8. रथयात्रा पूरी के अलावा अन्य राज्यों में भी मनाया जाता है परन्तु पुरी का रथयात्रा सर्वाधिक प्रचलित है।
  9. इस रथयात्रा को बड़े त्योहार की तरह मनाते हैं इस मौके पर लाखों लोग भगवान के दर्शन करने आते हैं इसलिए खूब भीड़ लगती है।
  10. इस अवसर पर भव्य मेला लगता है। जहां लोग ज़रूरत की चीजें खरीदते हैं। सुरक्षा के कड़े इंतजाम भी किए जाते हैं। रथयात्रा का संपूर्ण दृश्य का tv पर लाइव प्रसारण भी होता रहता है ऐसे में को लोग वहां नहीं जा पाते वो भी घर से रथयात्रा का भव्य आयोजन देख पाते है।
इस लेख के माध्यम से हमने रथयात्रा पर निबंध (Rath Yatra Par Nibandh) और रथयात्रा पर 10 लाइन लिखा है उम्मीद करते हैं आपको यह निबंध पसंद आयेगा। इसे अपने दोस्तों के साथ भी सोशल मीडिया पर जैसे फेसबुक व्हाट्सएप आदि में जरूर शेयर करें, धन्यवाद।

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