विद्यार्थी जीवन और अनुशासन: सफलता की कुंजी
हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन अवशायक है उसी प्रकार विद्यार्थी जीवन मे अनुशासन का होना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे विद्यार्थी एक आदर्श छात्र बनता है, आज हम विद्यार्थी जीवन और अनुशासन पर निबंध पढ़ेंगे, अगर आप विद्यार्थी हैं तो आपको यह लेख जरूर पढ़नी चाहिए, आइए प्रारंभ करें।
विद्यार्थी जीवन और अनुशासन
प्रस्तावना
जीवन में अनुशासन अत्यंत महत्वपूर्ण है इससे जीवन को व्यवस्थित किया जा सकता है, जिनमें अनुशासन का अभाव होता है उनमें नियम व् नीतयों का पालन करने की क्षमता नहीं होती, उन्हें कब क्या करना है यह पता नहीं होता, अनुशासनहीन मनुष्य अपने काम के दौरान आधुनिक उपकरणों जैसे मोबाइल पर ध्यान केंद्रित करता और वक्त बेकार बीता देता है, इसके विपरित जिसमें अनुशासन होता है वह व्यक्ति अपना ध्यान उन्हीं जगह लगाता है जो वास्तव में आवश्यक है, अगर उसे 3 घंटे पढ़ना है तो वह उस समय पर केवल पढ़ाई करेगा, खेलने के समय पर केवल खेलेगा और उपकरणों जैसे मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर का उपयोग करने के लिए भी समय निर्धारित करता है और उसी वक्त आधुनिक उपकरणों का उपयोग करता है।
विद्यार्थी जीवन और अनुशासन
जब बच्चे स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं तब उन्हें ज्ञान के अलावा अनुशासन भी सिखाया जाता है यह अत्यंत आवश्यक है जीवन को व्यवस्थित ढंग से जीने के लिए जिस विद्यार्थी में अनुशासन कूट-कूट कर भरा होता है वह गुरुद्वारा दिए गए गृह कार्य को सदैव पूरा करके आता है प्रतिदिन 4 घंटे पढ़ाई करता है, प्रतिदिन कक्षा में उपस्थित रहता है इससे वह बालक हर रोज कुछ ना कुछ नया सीखते रहता है जो आगे चलकर उसके काम आता है, अनुशासन हीन विद्यार्थी जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता।
प्राचीन काल में अनुशासन
प्राचीन काल में बालकों को गुरुकुल में पढ़ाया जाता था साथ ही सख्ती से अनुशासन का पालन कराया जाता था, उस समय के विद्यार्थियों में गुरु के प्रति आदर भावना होती थी उनके आज्ञा का पालन करके सभी सीख को गंभीरता से अपनाते थे, गुरुकुल में अध्ययन करने वाले छात्रों की जिम्मेदारी वहां के गुरु पर होती थी जो उनमें ज्ञान, संयम, अनुशासन और कौशल का विकास करके उन्हें योग्य इंसान बनाते थे।
आज के विद्यालयों में अनुशासन
आजकल विद्यालयों में अनुशासन का पालन इतनी शक्ति से नहीं किया जाता जितना प्राचीन काल के गुरुकुल में क्या जाता था, जब विद्यार्थी अपनी पहली कक्षा पढ़ने जाता है तब वहां गंभीरता से अनुशासन सिखाया जाता है पहली से बारहवीं कक्षा तक विद्यार्थी कुछ हद तक अनुशासन का पालन करते आते हैं किंतु जैसे ही वह महाविद्यालय में प्रवेश करते हैं वे सारे अनुशासन भूल जाते हैं, अनुशासनहीन बनकर यहां वहां घूमते रहते हैं, महाविद्यालय के विद्यार्थियों में अनुशासन खत्म सा होता जा रहा है आज हर कॉलेजों मैं यह दृश्य देखा जा सकता है कि पढ़ाई के वक्त पर छात्र यहां वहां घूमते रहते हैं। विद्यार्थी अनुशासनहीन होने के साथ-साथ अभद्र होते जा रहे हैं, उनके पहनावे में सभ्यता खोता जा रहा है, शिक्षकों के प्रति आदर भरना घटता जा रहा है, अध्यापक एवं अध्यापिका के सुझाव, सलाह व् उचित बातों को गंभीरता से नहीं लेते।
जीवन में अनुशासनहीनता की समस्या
विद्यार्थी जीवन में जहां पर अनुशासन का कठोरता से पालन करना होता है वहीं आजकल के बच्चे अपना अमूल्य समय मोबाइल फोन पर वीडियो एवं गेम खेलने में बिता देते हैं बड़े छात्र जो अब महाविद्यालयों में पहुंच गए हैं वह ज्यादातर घूमने फिरने में अपना वक्त गंवाते हैं, अनुशासन के साथ पढ़ाई पर बहुत कम ही विद्यार्थी गंभीरता से ध्यान केंद्रित कर पाते हैं।
अनुशासनहीनता की समस्या केवल विद्यार्थियों में नहीं अपितु देशभर में बढ़ती जा रही है, आधुनिक युग के मनुष्य देर रात तक फोन में लगा रहता है और देरी से सोता है इसी वजह से सूर्योदय के बाद वह नींद से बाहर आता है, ठंड के बहाने स्नान भी नहीं करता। अब तो समय ऐसा आ गया है कि विद्यार्थियों का मन अध्ययन से घटता जा रहा है यदि किसी दिन छात्र का साइकिल पंचर हो जाए तो वह स्कूल नहीं जाने का बहाना ढूंढ लेता है, कई छात्र ऐसे मिल जायेंगे जिन्हें बहाना चाहिए स्कूल से छुट्टी लेने का, कई लोग छुट्टी के लिए झूठा आवेदन पत्र भेजते हैं, यदि अध्यापक द्वारा छुट्टी लेने का वास्तविक कारण पता लगाया जाए तो पता चलता है की वह घर बैठे टीवी देख रहा है।
अनुशासनहीनता और बढ़ता आलस्य
साल के पहले दिन कई लोग संकल्प लेते हैं कि वे हर रोज जिम जायेंगे लेकिन मार्च आने तक कई लोग जिम जाना ही छोड़ देते हैं ये इसलिए होता है क्योंकि उनमें आत्म अनुशासन (self discipline) की कमी होती है, लोग अनुशासन के साथ लगातार काम इसलिए नहीं करते क्योंकि उनमें आलस्य (laziness) आ जाता है, आलस की वजह से डिसिप्लिन (discipline) टूट जाता है।
विद्यार्थी भी नए स्कूल में दाखिला लेने के बाद तय करता है की वह हर रोज पाठशाला जायेगा किंतु कुछ महीने निरंतरता से जाने के बाद बीच-बीच में छुट्टी लेते रहता हैं मतलब निरंतरता नहीं बना पता और अनुशासन टूट जाता है।
अनुशासित रहने के उपाय
अनुशासन एक दिन में नहीं आता, खुद को अनुशासित रखने के लिए हर रोज प्रयास करना होगा, कई लोग ठान लेते हैं की वे डिसिप्लिन के साथ काम करेंगे और कोई बड़ा लक्ष्य रख लेते हैं जैसे 4 घंटे लगातार पढ़ना, रोज सुबह 4 बजे उठाना, प्रतिदिन 1 घंटा एक्सरसाइज करना इत्यादि लेकिन अचानक खुद को मुश्किल टास्क देने से उसे कुछ दिनों तक ही सही से कर पाते हैं, बाद में पहले जैसे दिनचर्या को ही फॉलो करते रहते हैं।
अगर खुद को अनुशासित करना ही है तो पहले मामूली सा टास्क रखना चाहिए जैसे अगर सुबह 4 बजे उठने की आदत डालना है तो पहले 6 बजे उठ कर देखें, कुछ दिन बाद 5 बजे और जब आपको लगे कि सुबह उठना आसान लग रहा है उसके बाद 4 बजे उठाना शुरू करें ऐसे करने से धीरे धीरे आप में अनुशासन आता जायेगा।
इसी प्रकार लंबे समय तक पढ़ाई करने के लिए पहले 15 मिनट ध्यान केंद्रित करके पढ़ाई करें और फिर समय को बढ़ाते हुए 30 मिनट तक लगातार पढ़ना शुरू करें जब यह आसान लगने लगे तब आपको धीरे-धीरे करके 2 घंटे से 4 घंटे तक पढ़ने का आदत बना लेना चाहिए।
अनुशासित रहने के लिए आपको प्रतिदिन करने वाले छोटे बड़े कार्य को जरूर पूरा कर लेना चाहिए जैसे अपना होमवर्क, सुबह पढ़ाई करना, प्रतिदिन स्नान करना, रोज विद्यालय जाना इत्यादि।
उपसंहार
अगर व्यक्ति को जीवन में सफलता प्राप्त करना है तो उसमें अनुशासन होना जरूरी है क्योंकि बिना अनुशासित जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता नहीं मिल सकती। विद्यार्थियों को चाहिए कि वो अपने अध्ययन कार्य को गंभीरता से करें, घूमने फिरने में वक्त न बताएं, पढ़ाई लिखाई करके अच्छे पद पर पहुंचने के बाद जब चाहे तब देश विदेशों की यात्रा कर सकते हो इसलिए वर्तमान समय को फुजूल चीजों में खर्च मत करो केवल वही करो जो भविष्य में तुम्हें काम आए।
आखरी शब्द
अनुशासित रहने वाले मनुष्य अपने लक्ष्य से नहीं हटते, अपने लक्ष्य की प्राप्त तक उस पर कार्य करते रहते हैं और अंततः एक सफल व्यक्ति बनते हैं। अगर आपको यह लेख पसंद आया तो इसे जरूर शेयर करें। धन्यवाद!
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