विद्यार्थी जीवन में मित्रता का महत्व निबंध - Vidyarthi Jeevan Me Mitrata Ka Mahatva

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसे हम बनाते हैं जो जीवनपर्यन्त बना रहता है। कोई मित्र ऐसा भी होता है जिसे हम अपने परिवार का सदस्य ही मानते हैं। इस लेख में हमने विद्यार्थी जीवन में मित्रता का महत्व निबंध हिंदी में लिखा हुआ है इसे जरूर पूरा पढ़ें। 

विद्यार्थी जीवन में मित्रता का महत्व निबंध - Vidyarthi Jeevan Me Mitrata Ka Mahatva

विद्यार्थी जीवन में मित्रता का महत्व निबंध - Vidyarthi Jeevan Me Mitrata Ka Mahatva

विद्यार्थी जीवन में हम स्वतंत्र रहते हैं हम जो चाहें वो कर सकते हैं। सभी चिंताओं से मुक्त किसी जिम्मेदारी का अहसास नहीं रहता। जब हम नए पाठशाला में दाखिला लेते हैं तो वहां हमारे कई विद्यार्थी मित्र बनने लगते हैं। 

विद्यालय में लोगों से मित्रता होने की वजह से ही वहां मन लगा रहता है नहीं तो अगर कोई मित्र ही ना बने तो हम अकेले उदास बैठे रहते हैं। जिनके दोस्त नहीं हैं वो मित्रता का महत्व (jeevan me mitrata ka mahatva) अच्छे से समझते हैं और जिनके दोस्त हैं वो समय आने पर मित्रता नहीं निभाते। ऐसा नहीं कह रहा हूं की हर मित्र ऐसा ही हो, बहुत से अच्छे मित्र भी बनते हैं जो मुश्किल परिस्थितियों में भी हमारा साथ देते हैं, वे मतलबी नहीं होते, अच्छे दोस्त हमेशा हमारा भला चाहते हैं।

विद्यार्थी जीवन वह अमूल्य पल है जो जाने के बाद दुबारा लौटकर नहीं आती लेकिन यादों में हमेशा बसती है। इस दौरान हमें कई दोस्त मिलते हैं जिनमें कुछ का स्वभाव मीठा और कुछ शरारती अंदाज वाले होते हैं। विद्यार्थी जीवन में संगति भी हमारे भविष्य का निर्धारण करता है, अच्छी संगति से अच्छी आदतें, नेक विचार और अपने कर्तव्यों का आभास होता है वहीं बुरे संगति में पड़कर बुरे कार्य, कड़वे बोल, कर्तव्य के प्रति अनुत्तरदायित्व और लापरवाही जैसे अवगुण में रह जाते हैं। 

स्कूल के दिनों अधिकतर मित्र का स्वभाव अच्छा प्रतीत होता है लेकिन जैसे जैसे बड़े होकर उच्च विद्यालयों में जाते हैं तो वहां कई अच्छे और बुरे आदत वाले मित्र भी नजर आते हैं। 

वहां हमें हंस के गुणों का आह्वाहन करना चाहिए, अगर हँस के सामने एक प्याले में दूध और पानी दोनों को मिलाकर रखा जाए तो हंस का यह गुण है की वह उसमें से केवल दूध को ग्रहण करता और पानी को छोड़ देता है। उसी तरह दुनिया में अच्छे और बुरे दिनों तरह के लोग हैं उनमें से हमें अच्छे को मित्र बनाना और बुरे लोगों से दूर रहना चाहिए।

स्कूल में यदि मित्र ना हो तो हम अकेले पड़ जाते हैं। अपनी मनोदशा किसी के साथ साझा नहीं कर सकते, भरोसेमंद साथी की तलाश हमेशा रहती है। वो इंसान खुशनसीब माना जाता है जिसके पास परममित्र होता है क्योंकि सच्ची मित्रता सबको नसीब नहीं होता।

उसकी दोस्ती सच्ची है या नहीं लोग इसे परखने के लिए परीक्षा लेते हैं लेकिन सच्ची मित्रता को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती, जब मौका आता है तो वे मित्रता सिद्ध कर देते हैं। मुश्किल समय पर या दुख के समय पर दोस्तों की असलियत उजागर होता है की वह सच मे दोस्त था या दोस्तों का ढोंग मात्र था।

दोस्ती का रिश्ता जन्म से नहीं होता इससे बनना पड़ता है, इसकी खासियत ये है की इसमें कोई जाति, धर्म, बिरादरी, उम्र का भेदभाव नहीं होता एक व्यक्ति किसी भी युवक, युवती से मित्रता कर सकता है इससे फर्क नहीं पड़ता की वह किस समाज से आता / आती है।

बच्चों के लिए मित्रता का महत्व

छोटे बच्चों को अपने सामान दूसरे बच्चे से दोस्ती करना पसंद होता है। बच्चे उसी से मित्रता करना पसंद करते हैं जो उनके समान रुचि रखता हो, वही खेल खेलता हो। बच्चों की मित्रता निश्चल और निस्वार्थ रहती है। उनमें कभी-कभी लड़ाई झगड़े होते रहते हैं किंतु अगले ही पल सब भूलकर वापिस दोस्त बन जाते हैं। बचपन में हमारे कई दोस्त रहते हैं जिसके साथ हमने कई यादगार पल बिताए हैं वह सबके लिए स्वर्णिम अवसर से कम नहीं है।

अच्छी दोस्ती किससे बनती है?

एक अच्छी दोस्ती विश्वास से बनती है। सच्ची दोस्ती में निश्वार्थ भाव छुपा होता है जो सदैव वैसा का वैसा बना रहता है जैसा की श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता जो बाल्यावस्था से लेकर किशोरावस्था तक और उसके बाद भी वैसा का वैसा बना रहा। अच्छी दोस्ती वर्षों बीत जाते के बाद भी वैसा ही रहता है, सच्चे मित्र के प्रति प्रेम कभी कम नहीं होता। 

अच्छी मित्रता के लाभ

बहुत से बातें है जो हम अपने मित्रों से ही कह सकते हैं। अच्छी मित्रता से हमने अच्छे विचार अपने आप आ जाते हैं। जब हम किसी कठिन परिस्थिति में हो तब दोस्त के आने से ही परिस्थिति सुधारने लगता है। निराशा या हताश होकर बैठे तो दोस्त हौसला बढ़ता है। अगर अपने मार्ग से घटक जाए तो वह हमें सही उपदेश देता है। अच्छा मित्र निस्वार्थ भाव से आपके साथ जीवन भर रहता है। सालों तक अगर दो मित्र में बात न हो तो भी दोस्ती कम नहीं होती ऐसी होती है सच्ची मित्रता। हमारे बाद हमें सबसे ज्यादा हमारे मित्र जानते है।

बुढ़ापे में दोस्तों का महत्व

जब हम स्कूलों में पढ़ते हैं तब विद्यार्थी जीवन में हमारे बहुत से पसंदीदा मित्र बनते हैं कुछ मित्र जीवनपर्यंत तक दोस्त रहते हैं और कुछ स्कूल के बाद भूल जाते हैं। लेकिन वास्तविक मित्रता सदैव वैसा का वैसा बना रहता है। हम देखते हैं की बड़े बुजुर्ग अपने मित्रों से कई सालों बाद मिलते हैं लेकिन फिर भी उन्हें देखकर लगता है कि वह हमेशा साथ साथ थे, वही मित्रता नजर आती है जो पहले थी। सच्ची मित्रता बचपन से लेकर युवावस्था और बुजुर्गावस्था में भी अटूट बना रहता है।

मित्रता का कर्तव्य क्या है?

यदि हम किसी से मित्रता करते हैं तो हमारा कर्तव्य बनता है की जब उन्हें हमारी सहायता की आवश्यकता हो तब हम तत्पर रहें यदि विकट परिस्थिति में मित्र साथ ना दे इसका अर्थ है वह मित्रता सच्ची नहीं है। दोस्ती के प्रति हमारा यह भी कर्तव्य है की हम अपने मित्र की भावनाओं का सम्मान करें कुछ ऐसा कृत न करें जिससे उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचे। 

सच्ची दोस्ती क्या होती है?

सीधे - सीधे कहें तो सच्ची दोस्ती वह है जो बचपन से बुढ़ापे तक हमेशा वैसी की वैसी बनी रहे। 

यह भी पढ़ें👇👇👇


कोई टिप्पणी नहीं

Please do not enter any spam link in the comment box.

Blogger द्वारा संचालित.