बैसाखी पर निबंध - Essay on Baisakhi in Hindi
मित्रों हमारे देश में साल में बहुत सारे त्योहारों को मनाया जाता है इसी तरह बैसाखी त्योहार भी मुख्य रूप से सिख समुदाय के लोग हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाते हैं इसके बारे में इस पोस्ट में जानने वाले हैं। आज का बैसाखी पर निबंध (Essay on Baisakhi in Hindi) लेख सभी कक्षाओं के लिए उपयोगी है इसलिए बच्चे और बड़े कक्षाओं के विद्यार्थी इसे जरूर पढ़ें।
बैसाखी पर निबंध - Essay on Baisakhi in Hindi
प्रस्तावना
बैसाखी का अनोखा त्योहार हर वर्ष 13 या 14 अप्रैल को पड़ता है। यह कृषि क्षेत्र में लहलहाती फसलों के कटाई के अवसर पर जश्न की तरह है। इसे पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के अलावा पूरे भारत देश में हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। कई जगह इस मौके पर भव्य मेला लगता है जिसमें आसपास और दूर दराज से लोग शामिल होते हैं। मेले में भीड़ उमड़ती है वहां जगह-जगह विभिन्न व्यंजनों के दुकान एवं ठेले लगे रहते हैं। दुकानों से आवश्यक चीजें खरीदते हैं तथा उत्सव में नए परिधान पहनकर गुरुद्वारा जाते हैं। इस अनोखे उत्सव को हिन्दू समुदाय द्वारा भी मनाया जाता है इस दिन वे मंदिर जाकर भगवान से आशीर्वाद लेते हैं। यह दिन सिख समुदाय के लिए नए साल की भांति है। सिख समाज में इसका बड़ा महत्व है इसी कारण प्रत्येक वर्ष सिख समुदाय से संबंधित लोग बैसखी उत्सव का हर साल इंतजार करते हैं।
मुख्य सिख त्योहार - बैसाखी
गुरु अमरदास जी ने लोगों को गुरु सेवा का अर्थ सिखाया था इन्होंने ही बैसाखी को मुख्य उत्सव के रूप में शामिल किया। तभी से पूरे सिख समुदाय के लोगों द्वारा इसे प्रसन्नता के साथ मनाया जाता है। श्री गुरू तेग बहादुर जी के पश्चात 11 नवम्बर सन 1675 को सिखों के दसवें गुरू बने गुरु गोबिंद सिंह द्वारा सन् 1699 में खालसा पंथ का प्रतिष्ठापन किया गया था। यह दिन सिखों के लिए महत्वपूर्ण बन गया तभी से हर साल इस दिन बैसाखी या वैसाखी धूमधाम से मनाए जाने लगा। वैशाखी उत्सव वाले दिन संपूर्ण गुरुद्वारे में भव्य सजावट दिखती है। पंजाब के गुरुद्वारा जहां श्रद्धालुओं का प्रातः एवं संध्याकाल भारी जमावड़ा लगता है इस दिन सबके चेहरे पर मुस्कान एवं प्रसन्नता देखी जा सकती है। लोग अपने परिवारवालों, रिशेदारों, मित्रों और सहकर्मियों के साथ नाचते, गाते और झूमते हुए इस दिन को मनाना खूब पसंद करते हैं।
बैसाखी के अवसर पर स्वर्ण मंदिर में उत्सव
ये सिख समुदाय का सबसे पावन स्थल है जहां हर रोज हजारों श्रद्धालु और पर्यटक घूमने आते हैं। यह भव्य गुरुद्वारा है जो बाहर की ओर से सोने का बना है इस कारण इसे स्वर्ण मंदीर नाम दिया गया है। यह मंदिर पर्यटन का केंद्र तो है ही परंतु जब बैसाखी उत्सव का आगमन होता है तो यहां श्रद्धालुओं की खूब भीड़ उमड़ती है। मंदिर को भव्य रूप से सजाया जाता है। जो सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। लोग यहां दूर-दूर से पावन उत्सव में भाग लेते आते हैं।
बैसाखी त्यौहार का महत्व
सिख समुदाय के लिए बैसाखी नए साल का प्रतीक है। साथ ही बंगाली कैलेंडर में भी इसे कैलेंडर का प्रथम दिन माना जाता है। इस दिन लोग अच्छे भोजन व् पोशाक पहनकर गुरुद्वारा प्रार्थना करने जाते हैं। इस विशेष अवसर पर गुरुद्वारा को रौशनी और रंग बिरंगे फूलों से सजा दिया जाता है। हिंदू समुदाय के लोग भी इसे नए वर्ष के प्रतीक के रूप में मनाते है। विश्व के अलग-अलग जगहों जैसे यूनाइटेड स्टेट्स, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा आदि में भी इसे मनाया जाता है। इसे रबी फसल पकने पर उसके कटाई के उत्सव के रूप में मनाते हैं। कहते है जब से श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की तब से बैसाखी को अप्रैल के 13 या 14 तारीख को मनाया जाने लगा है। समुदाय की भलाई तथा धर्म रक्षा हेतु खालसा पंथ का गठन 1699 में किया गया था।
बैसाखी वाले दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान कर ईश्वर को प्रणाम करते हैं। क्योंकि ये कृषि से संबंधित त्योहार भी है तो इसलिए ये फसलों के कटाई का जश्न भी है। लोग रिश्तेदारों और मित्रों को स्वादिष्ट मिठाइयां बांटते हुए इस दिन की मुबारक बात देते हैं।
यह ऐसा त्योहार है जिसे अलग - अलग राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में पोहेला बोशाख, असम में रोंगली बीहु, ओडिशा में महा विश्व संक्रांति, आंध्र प्रदेश व् कर्नाटक में उगाडी और केरल में विशु आदि नामकरण से यह खूब प्रचलित है। बैसाखी उत्सव के रंग में सिख भाई रंगे नजर आते हैं, ढोल - नगाड़े संग लोक नृत्य का आनद लेते हैं, बैसाखी गीत गाकर सब खुशियां दुगुनी करते हैं। आसपास के गांव से लोग नाच - गान देखने आते हैं उनका मन प्रफुल्लित हो उठता है।
उपसंहार
बैसाखी उत्सव में सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारे जाकर अपने और अपने परिवार वालों के लिए प्रार्थना करते हैं। यह किसानों के लिए महत्वपूर्ण दिन है किसान भाई अपना रबी फसल काटकर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए अगले साल और अच्छे फसल की कामना करते हैं। लोग बैसाखी के अवसर पर मिठाई और पकवान बांटकर खुशियां फैलाते हैं। इस दिन दावत का आयोजन करके लोगों को भरपेट भोजन कराया जाता है। यह नव वर्ष का प्रतीक है इसलिए दिन की शुभारंभ ईश्वर की प्रार्थना से होती है। मंदिरों और गुरुद्वारों में दिनभर उत्सव का माहौल बना रहता है।
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