प्रदूषण की समस्या और समाधान पर निबंध | Pradushan ki samasya aur samadhan par nibandh
आजकल हमारा वायुमण्डल अत्यधिक दूषित हो चुका है, जिससे मानव जीवन खतरे में है। अम्ल वर्षा और हवा में विषाक्त गैसों के मिलने के कारण लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है। अगर हमने इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया तो इस दुनिया में रहने वाले मनुष्य और जीव जंतुओं का जीवन संकट में आ सकता है। प्रदूषण अब बहुत गंभीर समस्या बन चुकी है। उद्योगीकरण और शहरीकरण के चलते हवा, पानी, और मिट्टी सभी प्रदूषित हो रहे हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ रही है। इसे सुलझाने के लिए हमें वनों की रक्षा करनी होगी और पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा। इस लेख में आप प्रदूषण की समस्या और समाधान पर निबंध पढ़ने वाले हैं। बढ़ते प्रदूषण का क्या समाधान हो सकता है उनके बारे में इस निबंध में चर्चा की गई है, आइए इस लेख को शुरू करते हैं।
प्रदूषण की समस्या और समाधान पर निबंध हिन्दी में
Pradushan ki samasya aur samadhan par nibandh |
प्रस्तावना -
आज हमारा वायुमण्डल बहुत ही खराब हालत में है, इससे हम सभी को मिलकर समस्या का समाधान निकालना होगा। प्रदूषण ने हमारे पर्यावरण को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे हमारे जीवन को खतरा हो रहा है। यह निबंध इसी समस्या पर ध्यान केंद्रित करके हमें इस समस्या के प्रति सजग बनाता है। प्रदूषण के कारण अम्ल-मिश्रित वर्षा और विषाक्त वायुमण्डल में वृद्धि हो रही है, जिससे हमें सांस लेने में कठिनाई हो रही है। वनों की कटाई और उद्योगीकरण के कारण हमें वायुमण्डल को सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए। इसके अलावा, हमें जल स्रोतों को प्रदूषित नहीं होने देने और कृषि में प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करने के लिए समर्थन करना होगा। यह निबंध हमें इस समस्या के समाधान के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता को समझाता है और हमें पर्यावरण संरक्षण का उत्तरदाता बनाने का संकेत करता है।
प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होने का कारण -
यह बहुत गंभीर समस्या है जिसका निवारण निकालना जरूरी हो गया है। आज शहरों में लगे कारखानों से निकलने वाले काले धूंवे से वायुमंडल दूषित हो रहा है, इसके लिए मानवीय गतिविधि भी जिम्मेदार है क्योंकि वो ऐसे गतिविधियों को अधिकता में कर रहा है जिसका प्रकृति पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कई कारणों से प्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है आइए कुछ प्रमुख कारणों के बारे में जानते हैं:
1. जनसंख्या वृद्धि
जनसंख्या बढ़ने से लोगों की संख्या में अधिकता होती है, और बड़ी आबादी द्वारा चीजों का अधिक उपयोग किया जाता है, आबादी बढ़ने से मानव गतिविधियों में भी कई गुना इजाफा होने लगता है, लोग ईंधन हेतु अधिक जलाऊ लकड़ी का उपयोग करते हैं, जिससे वन संसाधन में कमी होने लगती है। अधिक लोगों की वजह से वाहन चलाने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी होती है, जिसके चलते सड़क पर ज्यादा गाडियां चलती है और उसमें से निकलने वाला धुंवा हवा को दूषित करता है। जितने ज्यादा लोग, उतने ज्यादा चीजों का उपयोग, और उतना ही ज्यादा प्रदूषण होगा, इसलिए प्रदूषण को कम करने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण भी आवश्यक है।
2. उद्योगीकरण
उद्योगीकरण का मतलब है किसी शहर या क्षेत्र को और अधिक उद्यमी बनाना और उसमें और अधिक उद्योग स्थापित करना। यह सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए है, लेकिन कई बार यह प्रदूषण का कारण बन सकता है। जब उद्योग बढ़ता है, तो उससे और अधिक चीजें या सामग्री और कचरा निकलता है जो हवा, पानी, और मिट्टी को प्रदूषित कर सकता है। उद्योगों में इसे सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके कामकाजी प्रक्रियाएं और उत्पादन में कोई ऐसी चीजें शामिल नहीं हैं जो प्रदूषण को बढ़ा सकती हैं। उद्योगीकरण के समय, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उद्योग स्वच्छता, पर्यावरण की सुरक्षा, और प्रदूषण नियंत्रण के लिए स्थानीय नियमों का पालन करता है ताकि हमारे आसपास का पर्यावरण स्वस्थ रहे।
3. वाहनों का उपयोग
वाहनों से प्रदूषण होता है क्योंकि जब वे चलते हैं, तो उनकी इंजन्स में ईंधन जलता है, जिससे विषाक्त गैसें निकलती हैं। इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, और नाइट्रोजन ऑक्साइड होते हैं, जो हवा को दूषित करते हैं। ये गैसें हमारे चारों ओर की हवा को भी प्रभावित करती हैं, जिससे लोगों को सांस लेने में मुश्किल हो सकती है और यह वन्यों और पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए, हमें वाहनों का सही तरीके से उपयोग करके प्रदूषण को कम करने के लिए सावधान रहना चाहिए।
4. अधिक सामग्री का उपयोग
आधुनिक संसाधनों के ज्यादा उपयोग से भी प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो सकता है। जब हम ज्यादा वाहन चलाते हैं, तो हम ज्यादा पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल करते हैं गाड़ियों को चलाने के लिए, लेकिन जब वह चलता है तो काला धुंआ निकाली है, जिसमें हानिकारक तत्व मिले होते हैं जो हवा में मिलकर उसे दूषित करता रहता है। सड़कों पर अभी के समय में अलग अलग प्रकार के छोटी बड़ी गाडियां दिन रात चलते रहते हैं जिनके चलने से हर रोज कितना सारा धुंआ निकलता है और वायु की गुणवत्ता खराब हो जाता है। इसके अलावा, लोग अन्य गतिविधियों से भी प्रदूषण बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, कई लोग प्लास्टिक की बनी चीजों को जलाते हैं उसके जलने से जो धुंआ निकलता है वो वायुमंडल में जा मिलता है और वायु प्रदूषण का कारण बनता है। हमें यह समझना आवश्यक है कि अगर हम अनुचित गतिविधियों को दुनचार्य में लाते हैं, जैसे आसपास कचरा फैलाते हैं, स्वच्छता का ख्याल नहीं रखते तो हमारी इन गतिविधियों का हमारे पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है और इसलिए हमें सकारात्मक कदम उठाकर अनुचित गतिविधियों को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
5. वनों या जंगलों की अंधाधुंध कटाई
जंगलों को बिना सोचे-समझे काटना प्रदूषण की बड़ी तथा गंभीर समस्या को उत्पन्न कर सकता है। जंगलों को काटने के कारण ही हमारे वायुमंडल में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। जंगलों का काटना अच्छी बात नहीं है क्योंकि जंगलों में पेड़ों का होना वायु को शुद्ध करने का कार्य करता है। जब लोग जंगलों को काटते हैं, तो इससे अच्छी हवा बनाने वाले पेड़ों की संख्या कम होती जाती है। पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में मदद करता है, लेकिन जंगलों की कटाई से यह कार्य कम होता है और वायुमंडल में कार्बन बढ़ जाता है। इसके साथ ही, जब हम जंगलों को काटते हैं, तो जंगलों में रहने वाले जानवरों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता और उनके अस्तित्व पर भी खतरा आ जाता है और जंगल कम होने से उनकी आबादी भी घटने लगती है। इसलिए, हमें जंगलों की अंधाधुंध कटाई को रोकना चाहिए ताकि हमारे वायुमंडल में प्रदूषण कम हो सके और हम सभी जीवों के लिए स्वस्थ और सुरक्षित माहौल बना सकें।
प्रदूषण के प्रभाव -
प्रदूषण का हमारे पर्यावरण पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है इससे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है जो मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं एवं यदि वे सांस के माध्यम से व्यक्ति के शरीर में चल जाए तो गंभीर स्वसन संबंधी रोग उत्पन्न कर सकते हैं। आइए प्रदूषण के प्रभाव के बारे में आसान शब्दों में जानते हैं:
1. वायु प्रदूषित हो जाता है
जब प्रदूषण के कारण वायु प्रदूषित हो जाता है तो सांस लेने में तकलीफ होती है, व् सांस से जुड़े घातक रोग तथा अन्य वायुजनित रोग उत्पन्न हो जाते हैं। वायु प्रदूषण का मुख्य कारण वायुमंडल में विषाक्त गैसों का मिश्रित होना है। उद्योगों, वाहनों, और जंगलों या वनों के जलने से जो धुआं उठता है वह शुद्ध हवा में मिलता है और उसकी गुणवत्ता घटाता है। इससे हवा में कचरे के टुकड़े, कार्बन डाइऑक्साइड, और सल्फर डाइऑक्साइड मिश्रित हो जाते हैं।
2. जल प्रदूषित हो जाता है।
जल प्रदूषण का कारण है नदियों और झीलों में हानिकारक पदार्थों का छोड़ा जाना, जैसे की उद्योगी कचरा और उर्वरक। कारखाने से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को जब नदियों में बहा दिया जाता है तो जल की गुणवत्ता कम हो जाती है यह भी जल प्रदूषण का मुख्य कारण है। अनुचित मानवीय गतिविधियों से भी जल प्रदूषण होता है, जैसे अपशिष्टों को बहाना, पेट्रोलियम उत्पादों का बहाव, पशुओं को तालाबों में नहलाना, उसमें कपड़ा धोना, और प्लास्टिक कचरों को फेंकना आदि। जल प्रदूषित होने से वह पीने लायक नहीं होता और अगर मनुष्यों, पशुओं, व् जंगली जानवरों द्वारा उसका सेवन कर लिया जाता है तो उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
3. जलजनित रोग
जब हम प्रदूषण की बात करते हैं तो जल प्रदूषण पर चर्चा करना जरूरी हो जाता है। वायु प्रदूषण की तरह अब जल भी दूषित होने लगा है, नदियों में अपशिष्टों के बहाव से जल में हानिकारक तत्वों का मिश्रण हो रहा है, तालाबों में भी गंदगी फैल गई है, हानिकारक चीजों को जल में फेंकने से जल दूषित तो होता ही है लेकिन जो जानवर उस जल को पीते उनका तबियत भी बिगड़ जाता है। प्रदूषण का हानिकारक प्रभाव जल पर पड़ने से वह अस्वच्छ हो जाता है, उसमें सूक्ष्म कीटाणु आ जाते हैं, जल पीने लायक नहीं होता, क्योंकि ऐसे दूषित जल के सेवन से जलजनित रोग जैसे पेट दर्द, पीलिया, चर्म रोग, हैजा, टाइफाईड बुखार, दस्त, उल्टीयां, पेचिश आदि रोग हो सकते हैं।
4. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलने वाला काला धुंआ पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है और हवा को विषाक्त करके इसकी गुणवत्ता को खराब कर रहा है। जिसके कारण फैक्ट्रियों वाले इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए शुद्ध ऑक्सीजन की कमी हो रही है। ऐसे क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों में श्वांस संबंधी रोग होने की आशंका बनी रहती है। प्रदूषण के कारण दिल की बीमारियां, फेफड़ों का कैंसर, वायरल रोग, चर्म रोग आदि गंभीर बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। प्रदूषण का प्रभाव केवल मानव स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि पालतू पशु से लेकर जंगली जानवरों तक और पक्षियों पर भी पड़ता है।
5. भूमि की उर्वरता घटती है
प्रदूषण की वजह से भूमि की उर्वरता शक्ति भी प्रभावित होती है। जब हानिकारक तत्व भूमि या मिट्टी के संपर्क में आते हैं तो वे उसकी उर्वरता शक्ति को क्षीण कर देते हैं, परिणामस्वरूप फसलों का विकास उचित रूप से नहीं हो पाता। कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को भूमि में फेंकने से, घरों के कूड़ा करकट को भूमि में फेंकने से और रसायनिक खाद का खेतों में अधिक छिड़काव करने से भी भूमि पर प्रतिकूल असर पड़ता है इससे भूमि प्रदूषण होता है।
6. ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन
बढ़ते प्रदूषण के चलते ग्लोबल वार्मिग और उसके बाद जलवायु परिवर्तन होने लगता है जो एक चिंता का विषय बना हुआ है। क्योंकि लोग जिस प्रकार घने वनों से आच्छादित क्षेत्रों को नष्ट करने में लगे हैं, पेड़ काट रहे हैं तो उससे न केवल वृक्षों की संख्या कम हो रही है अपितु पृथ्वी पर ऑक्सीजन की मात्रा में भी गिरावट हो रही है।
कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित करने और प्राणी जगत को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए पेड़-पौधे और घने वन महत्वपूर्ण है, किन्तु मनुष्य जिस तरह निर्दयता से जंगलों को काट रहा है उसके चलते कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करने वाले वाले वृक्षों की संख्या कम होने लगी है।
हमें यह ध्यान में रखना होगा कि जितना ज्यादा पेड़ पौधे कम होंगे, जितना अधिक वनों को हानि पहुंचेगा, पेड़ों द्वारा उतना ही कम कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित किया जायेगा, और जब CO2 कम अवशोषित होगा तो वातावरण में उसकी मात्रा बढ़ेगी, CO2 की मात्रा में अधिक वृद्धि होने से वायुमंडल में आवश्यकता से अधिक ऊष्मा एकत्रित हो जाता है जिससे जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगता है और इसके चलते ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
अत्यधिक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से वायुमंडल में तापमान बढ़ने लगता है और उसके बाद पृथ्वी भी गर्म होने लगती है ग्लोबल वार्मिंग की समस्या इसी वजह से उत्पन्न हो जाती है। इसका परिणाम क्या होता है कि जलवायु परिवर्तन स्थित होने लगता है जहां वर्ष होनी चाहिए वहां धूप पड़ती है और ढंग से बारिश भी नहीं होती, ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम में बदलाव आ जाता है उचित वर्षा न होने के कारण समय पर खेती नहीं हो पाती। तापमान में वृद्धि होने से ग्लेशियर पिघलने लगते हैं तथा समुद्र में जल का स्तर भी बढ़ने लगता है।
ग्लोबल वार्मिंग का नकारात्मक प्रभाव संपूर्ण प्राणी जगत पर पड़ता है और पेड़ पौधे भी अधिक तापमान के कारण झुलसने लगते हैं। पानी का स्तर नीचे चला जाता है, तालाब सूखने लगते हैं और नदियों का बहाव कम हो जाता है। कई जगह सूखे जैसे हालात बन जाते हैं लोगों को पीने का पानी नसीब नहीं होता, पेयजल हेतु उन्हें कठिन संघर्ष करना पड़ता है। ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के लिए अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाने चाहिए तथा वनों का विनाश करना पूर्ण रूप से बंद करना होगा पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना अति आवश्यक है।
प्रदूषण की समस्या का समाधान -
प्रदूषण गंभीर रोग उत्पन्न करता है इसलिए इसका समाधान निकालना या इसे कम के उपायों पर गौर करना जरूरी है। प्रदूषण मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक रूप से भी हो सकती है, प्राकृतिक घटनाओं से जो प्रदूषण होता है वह स्वतः ठीक हो जाता है, परंतु मानव गतिविधियों से जो प्रदूषण फैलता है उसे मनुष्य को ही ठीक करना होगा। प्रदूषण कम करने हेतु जंगलों को काटना बंद करना होगा और हर व्यक्ति को वृक्षारोपण करना होगा। नदियों, तालाबों, झीलों, तालाबों, समुद्र आदि में अपशिष्ट, कचरा, प्लास्टिक पैकेट आदि फेंकना बंद करना होगा, और कचरों को कूड़ेदान में ही डालना होगा। मिट्टी में हानिकारक खाद छिड़कना बंद करके प्राकृतिक खाद का छिड़काव करना होगा। वायु प्रदूषण कम करने के लिए अधिक पुराने वाहनों का उपयोग न करके कम धुंआ छोड़ने वाले या इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग बेहतर होगा इससे पॉल्यूशन को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। ध्वनि प्रदूषण कम करने के लिए अधिक शोर करने वाले हॉर्न को गाड़ी में नही लगाना चाहिए। पार्टियों में अधिक वॉल्यूम पर लाउडस्पीकर नहीं बजाना चाहिए। लोगों को सभी प्रकार के प्रदूषण को कम करने के उपायों को जानने में रुचि दिखानी होगी और छात्रों को भी इसके बारे में बताना होगा और उन्हें स्वच्छता बनाए रखने और प्रदूषण को कम करने के उपायों को अपनाने के लिए प्रेरित करना होगा।
निष्कर्ष -
इस संसार में किसी भी जीव, पशु या पक्षी ने प्रकृति को इतना नुकसान नहीं पहुँचाया जितना मनुष्यों ने पहुँचाया है। आधुनिकता और अपने स्वार्थ के कारण वह प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता गया और अब उसका दुष्परिणाम प्रदूषण के रूप में भुगत रहा है। अब भी वक्त है हमें पर्यावरण संरक्षण करने, और प्रदूषण को कम करने के लिए आगे आना चाहिए और ठोस कदम उठाना चाहिए, बच्चों और बड़ों को प्रकृति के महत्व के बारे में बताना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी पेड़ न काटे और ज्यादा से ज्यादा पौधरोपण करें ताकि प्रदूषण को नियंत्रित या कम किया जा सके।
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