कालिदास का जीवन परिचय - Kalidas ka jivan parichay in Hindi

कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि थे जिन्होंने अपनी रचनाओं में पौराणिक एवं दर्शन का उल्लेख किया है। विद्वानों द्वारा इन्हें राष्ट्र कवि का दर्जा दिया जाता है। इनकी कविताओं में श्रृंगार रस का समावेश पाठकों में भाव पैदा कर देता है। कालिदास केवल कवि नहीं बल्कि एक नाटककार भी थे। अभिज्ञानशाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम्, मालविकाग्निमित्रम् कालिदास की प्रमुख नाटकों के नाम हैं। महाकवि कालिदास ने कई रचनाएँ की जिसमें मेघदूतम् उनकी सर्वोत्तम रचना है। मेघदूतम् में उन्होंने एक यक्ष की कथा उचित ढंग से प्रस्तुत किया था। कथा में यक्ष को अलकापुरी से निकाल दिया जाता है और वह रामगिरि पर्वत पर रहने लगता है इस दरमियान यक्ष की व्यथा का उल्लेख कहानी में मिलता है।

कालिदास का जीवन परिचय

कालिदास का जीवन परिचय - Kalidas ka jivan parichay in Hindi
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जन्म :- कालिदास संस्कृत के विद्वान थे उन्होंने कई कविताएं और नाटक की रचना की है और साहित्य में अपना अद्वितीय स्थान प्राप्त किया। उन्होंने अपने रचनाओं में पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है। कालिदास के जन्म को लेकर कई विद्वानों ने अलग-अलग मत दिया लेकिन कालिदास का जन्म कब हुआ? इस संदर्भ में अब तक संतुष्टजनक उत्तर नहीं मिल पाया है। जन्म से जुड़ी कई अनुमान लगाए जा चुके हैं लेकिन सटीकता से यह पता नहीं चला की वे कौन से शताब्दी में हुए थे। इतिहासकारों में ज्यादातर मत प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व और चतुर्थ शताब्दी ईसा पूर्व की ओर है।

पहली शताब्दी :- पहले शताब्दी के मत के अनुसार माना जाता है की कालिदास उसी सदी के थे और उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे। कालिदास विक्रमादित्य के राज दरबार में कवि थे और नवरत्नों में से एक थे।

चौथी शताब्दी :- चंद्रगुप्त विक्रमादित्य और उनके उत्तराधिकारी कुमारगुप्त ने चतुर्थ शताब्दी में शासन किया था, साहित्यकार मानते हैं की कालिदास उनके समकालीन थे अर्थात उसी समय के थे।

जन्मस्थान :- उनके जन्म की तरह उनके जन्म स्थान को लेकर भी विवाद है। जब कालिदास अपने खंडकाव्य मेघदूतम लिख रहे थे तब उस लेख में उन्होंने ने मध्यप्रदेश, उज्जैन का नाम भी लिखा था, इसे देखते हुए माना जाता है की कालिदास उज्जैन के रहने वाले थे।

कविल्ठा गांव :- कुछ साहित्यकारों का मानना यह भी है की कालिदास उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा गांव के निवासी थे। उन्होंने वहीं अपनी शिक्षा प्राप्त की और मेघदूतम खंडकाव्य की रचना कर दी।

कालिदास प्रतिमा :- कविल्ठा गांव में सरकार ने कालिदास की प्रतिमा स्थापित करवाया है और वहां सभामण्डप तैयार करवाया है। जहां जून के महीने में तीन दिन तक गोष्ठी (सम्मेलन) का आयोजन होता है जिसमें कई विद्वान हिस्सा लेते हैं।

उच्चैठ :- यह भी माना जाता है की कालिदास बिहार के मधुबनी जिला के उच्चैठ के रहने वाले थे। कहते हैं की कालिदास वहीं गुरुकुल में रहकर परमज्ञानी बने और संस्कृत के विद्वान बने थे बाद में वे उज्जैन में निवास करने गए।

अन्य स्थान :- कई विद्वान का मानना है की कालीदास बंगाल और उड़ीसा के थे लेकिन पक्का प्रमाण अब तक नहीं मिला है।


कालिदास का जीवन परिचय 

कहा जाता है कालिदास शारीरिक रूप से सुंदर व्यक्ति थे वे प्रारंभिक जीवन में अनपढ़ और मूर्ख हुआ करते थे। उनका विवाह विद्योत्तमा से हुआ था, विद्योत्तमा राजकुमारी थी और कहा ये जाता है की उसने प्रतिज्ञा ली थी की वो उसी से शादी करेगी जो उसे शास्त्रार्थ मे हरा देगा (शास्त्रार्थ = वाद-विवाद, चर्चा या प्रश्नुत्तर)

कालिदास की कहानी

जब शास्त्रार्थ का प्रतियोगिता रखा गया राजकुमारी विद्योत्तमा ने सभी को हरा दिया तो हारे लोगों ने उसे अपमान समझकर निश्चय किया की वे विद्योत्तमा का विवाह बहुत मूर्ख आदमी से करवाएंगे।

वो लोग मूर्ख आदमी की खोज में निकल पड़े वहां उन्हें ऐसे व्यक्ति मिला जो एक पेड़ की डाली में बैठा था और खुद उस डाली को काट रहा था। ये देखकर उन लोगों ने सोचा कि इससे बड़ा बेवकूफ और कहां मिलेगा, इसे ही दरबार ले चलते हैं। उन्होंने उस मूर्ख व्यक्ति से कहा की तुम मौन धारण कर लो, और हम जो बोले वही करो।

उन लोगों ने उसे विद्योत्तमा के सामने उपस्थित कर कहा की ये हमारे गुरु हैं और आपसे शास्त्रार्थ करेंगे लेकिन अब उन्होंने मौन व्रत रखा है इसलिए हाथों से इशारा करेंगे, इशारे को समझकर हम आपको शब्दों में बताएंगे। राजकुमारी मान गई और शास्त्रार्थ शुरू हुआ।

विद्योतमा संकेत देते हुए प्रश्न पूछती है और एक उंगली दिखाते हुए कहती है की ब्रम्हा एक है। लेकिन यह देख कालिदास समझते हैं की राजकुमारी उसकी एक आंख फोड़ना चाहती है। जवाब में उन्होंने सामने दो उंगलियां दिखाई वे कहना चाहते थे की अगर तुम एक आंख फोड़ोगे तो मैं तुम्हारी दोनों आंख फोड़ दूंगा। इस बात को उसके साथ आए कपटी लोगों ने इस तरह समझाया: आप कह रही हैं कि ब्रह्म एक है लेकिन हमारे गुरु कहना चाह रहे हैं कि उस एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए दूसरों की सहायता लेनी आवश्यक है क्योंकि अकेला ब्रह्म स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता। 

विद्योतमा ने दूसरा प्रश्न पूछा जिसमें हमें अपना हाथ (हथेली) दिखाया और कहा की तत्व पांच है। उसे कालिदास ने समझा की वो थप्पड़ मरना चाहती है जवाब में कालीदास ने घूंसा दिखाया जिसका मतलब अगर तुम मुझे थप्पड़ मारेगी तो मैं घूंसा मार दूंगा। लेकिन इसे कपटियों ने इस तरह बताया: राजकुमारी आप पूछ रही है की तत्व पांच हैं पृथ्वी, जल, आकाश, वायु, अग्नि। लेकिन हमारे गुरु का सांकेतिक रूप से कहना चाहते हैं की: 

जो पांच तत्व हैं ये अलग अलग कोई कार्य पूरा नहीं कर सकते बल्कि आपस में मिलकर एक होकर उत्तम मानव शरीर का रूप ले लेते है। इस तरह प्रश्न उत्तर चलता रहा और अंततः विद्योतमा ने हार मान लिया और शर्त मुताबिक उसने कालिदास से विवाह कर लिया।

विवाह के बाद कालीदास राजकुमारी को अपने कुटिया में के आते हैं पहली रात को अचानक ऊंट की आवाज आती है। इस पर विद्योतमा पूछती है की "किमेतत्" जो शब्द संस्कृत शब्द था कालीदास संस्कृत को प्रारंभ में संस्कृत का ज्ञान नहीं था इस वजह से उन्होंने जवाब में  "ऊट्र" शब्द कहा। ये सुनते ही विद्योतमा को पता चल गया की कालिदास कोई विद्वान नहीं है।

उसके बाद विद्योतमा ने कालिदास को घर से निष्कासित करते हुए कहा की दुबारा इस घर में ज्ञानी विद्वान बनकर ही आना।

घर से निकाले जाने के बाद उन्होंने काली देवी की उपासना शुरू की, परिश्रम के बाद वे संस्कृत के विद्वान बन गए और अपने घर आ गए। दरवाजा खटखटाते हुए कहा कपाटम् उद्घाट्य सुन्दरि मतलब दरवाजा खोलो, सुन्दरी ये सुनकर विद्योतमा को लगा कोई ज्ञानी विद्वान पधारे हैं। कालिदास ने विद्योतमा को अपना पथ प्रदर्शक माना क्योंकि अगर वो उन्हें घर से नहीं निकालती तो वे परिश्रम करके विद्वान नहीं बनते।

कालिदास की प्रमुख रचनाएँ

कालिदास की कुल 40 रचनाएं हैं जिसे विद्वानों ने सिद्ध करने का प्रयास किया किंतु निर्विवाद रूप से केवल 7 ऐसे रचनाएं हैं जिन्हें माना जाता है कि उसकी रचना कालिदास ने की जिनमें अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम्, मालविकाग्निमित्रम्, रघुवंशम्, कुमारसंभवम्, मेघदूतम् और ऋतुसंहार सम्मिलित हैं।

महाकवि कालिदास वैदर्भी रीति के कवि थे उन्होंने अपनी कृतियों में सरल एवं मधुर शब्दों का प्रयोग किया हुआ है। उनका प्रकृति वर्णन अद्वितीय है। औदार्य गुण, आशीर्वाद और परंपरा से परिपूर्ण लेखों के लिए कालिदास को जाना जाता है। 

माना जाता है कि उन्होंने कई रचनाएं लिखी है जिनमें से कुछ निर्विवाद है जिसके बारे में आपने ऊपर पढ़ा उन सात रचनाओं को ही सटीक तौर पर कालिदास द्वारा रचित रचनाएं माना जाता है। अभिज्ञान शाकुंतलम् कालिदास की उन रचनाओं में से एक है जिसका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद किया गया था।

कालिदास की भाषा

कालिदास की रचनाओं में भाषा सरल और मधुर होती है जिसमें अलंकार और उस श्रृंगार रस का समावेश मिलता है। कालिदास वैदर्भी रीति के कवि  थे, कालिदास ने मेघदूतम में अपनी कल्पनाओं से यक्ष की कहानी को बताया था। इनकी भाषा हाजिर होने की वजह से पाठकों में भाव उत्पन्न हो जाता है। उन्होंने ऋतु का भी बखूबी वर्णन किया है।

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महाकवि कालिदास का जीवन परिचय in hindi

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