भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ पर निबंध हिंदी में

इस लेख में हम आपके लिए भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ पर हिंदी में एक निबंध लेकर आए हैं। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है और इससे हम राष्ट्रीय पशु बाघ के बारे में बहुत कुछ जानेंगे। बाघ, भारत का राष्ट्रीय पशु है जिसकी महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं और जो अपनी सुंदरता और शक्ति के लिए प्रसिद्ध है। हम इस निबंध में बाघ के बारे में रोचक तथ्यों, संरक्षण के अभियानों और इसके प्राकृतिक पर्यावरण में भूमिका पर विचार करेंगे। यह राष्ट्रीय पशु बाघ पर निबंध विद्यार्थियों के लिए तथा जो लोग टाइगर के बारे में जानकारी प्राप्त करने के इच्छुक हैं उनके लिए बहुत उपयोगी एवं रुचिकर होगा।

भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ पर निबंध हिंदी में

भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ पर निबंध हिंदी में

प्रस्तावना

बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु (National Animal) है। और यह भारत में उत्तराखंड, मध्य प्रदेश व् कर्नाटक जैसे राज्यों में सर्वाधिक पाए जाते हैं। बाघ के शरीर में लाल, पीले और सफेद रंग का मिश्रण और काले रंग की धारियां बनी रहती है। इसके चारों पैरों में बहुत ताकत होता है। अगर यह किसी जानवर को पंजे में दबोच ले तो छूटकर निकल पाना मुश्किल है। इसकी आंखें बहुत तेज है जिससे भोजन की तलाश करते हुए यह अपने शिकार पर नजरे गड़ाए रहता है यह ताकतवर और निडर जानवर है। इससे जंगल के अन्य प्राणी डरकर छिप जाते हैं। बाघ मांसाहारी जानवर है इसलिए इसे पेट भरने के लिए दूसरे जानवरों पर निर्भर पड़ता है। अन्य जानवर इससे दूर ही रहा करते हैं ताकि वे बाघ का शिकार ना बन पाए। बाघ, भारी-भरकम शरीर वाला एक जंगली जानवर है जिसका वजन 300 किलोग्राम तक हो सकता है तथा इसकी लंबाई 13 फीट तक हो सकती है इसके बावजूद यह बहुत तेज दौड़कर दूसरे जानवरों का शिकार कर सकता है। बाघ लगभग 85 किलोमीटर प्रति घंटा की तेज़ रफ्तार से दौड़ लगाने में सक्षम होता हैं साथ ही ये लगभग 7 फिट की ऊँचाई तक छलांग भी लगा सकता है। यह जंतु जगत में फ़ेलिडाए कुल का जानवर है। टाइगर का साइंटिफिक नाम पैंथेरा टाइग्रिस है।

बाघ की शारीरिक संरचना

बाघ गठीला शरीर वाला जंगली जानवर है जिसके दो आँखें, दो कान जो हर दिशा में घूम सकते हैं, एक नाक, चार मजबूत फुर्तीले पैर और लगभग तीन फीट लंबी एक पूंछ होती है। इसका शरीर मनुष्य से बहुत ज्यादा वजनी होता है। इसकी ऊंचाई 4 फीट तथा लंबाई 6 - 9 फीट तक हो सकती है। जो नर बाघ होता है उसका शरीर मादा बाघ से थोड़ा बड़ा होता है। बाघ की संरचना एक बिल्ली के समान प्रतीत होता है क्योंकि ये बिल्ली के परिवार के अन्तर्गत आता है। सामान्यतः बाघ के शरीर का रंग पीले रंग का दिखता है जिसमें काले धारियां नजर आती है इन धारियों से ही एक बाघ को पहचाना जाता है, इसका पेट वाला भाग सफेद रहता है। कई जगहों पर सफेद टाइगर भी पाए जाते हैं जिसके पूरे देह का रंग सफेद होता है इसके शरीर में भी काली धारियां बनी होती है। यह बाघ भारत में मध्यप्रदेश राज्य के रीवा शहर के आसपास के क्षेत्रों में पाए जाते हैं। मुकुन्दपुर जंगल को तो सफेद बाघों का घर माना जाता है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में सफेद एशियाई बाघ पाए जाते हैं। बाघ अलग अलग देशों में पाए जाते हैं और इसके एक से अधिक प्रजातियां भी है इसलिए प्रजातियों या उपजातियों के अनुसार बाघ का भार व् आकार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।

भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ

साल 1972 में नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड ने बाघ को राष्ट्रीय पशु के रूप में घोषित किया गया था। बाघ को लावण्यता, ताकत, फुर्तीलापन, निडरता और अपार शक्ति के कारण भारत के राष्ट्रीय जानवर के रूप में गौरवान्वित किया गया था। इसके बाद, 'प्रोजेक्ट टाइगर' की शुरुआत भारत ने 1 अप्रैल, 1973 को की थी। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य था बाघों की घटती हुई आबादी को पुनर्जीवित करना। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत, बाघों के प्रजातियों के संरक्षण का काम किया गया और बाघ को मारने का पूर्णतः निषेध किया गया।

प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger)

बाघ, जंगलों में रहने वाले जानवरों में से प्रमुख जानवर है और इसके एक से अधिक प्रजातियां मौजूद है। कुछ दशक पूर्व टाइगर की प्रजाति लुप्त होने की कगार पर थी इस खतरे को नियंत्रित करने तथा बाघों की सुरक्षा हेतु भारत सरकार ने साल 1973 में "प्रोजेक्ट टाइगर" को शुरू किया। पहले मानवो द्वारा बाघों का शिकार करके उसका विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उपयोग किया जाता था जिसमें परंपरा, खेल, चिकित्सक दवाइयाँ, उसके चमड़े को सजावट के तौर पर इस्तेमाल करना आदि शामिल था। इससे बाघों की संख्या में कमी आने लगी और इसकी प्रजातियां लुप्त होने लगी, बाघों की प्रजाति को सुरक्षित रखने हेतु अब इसे मरना पूरी तरह निषेध है। प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत बाघों को राष्ट्रीय उद्यानों में आश्रय प्रदान किया जाता है ताकि बाघ विलुप्त ना हो। 

इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य बाघ की प्रजाति को निरंतर बनाए रखना है और इस प्रोजेक्ट को लागू करने के बाद कुछ हद तक भारत में बाघों की संख्या में इजाफा देखने को मिला है। बाघ जंगलों में रहना पसंद करते है यह भारत के अलावा इंडोनेशिया, नेपाल, भूटान और कोरिया में अधिकता में पाया जाता है। हालांकि अलग अलग देशों में इसे जू यानी चिड़ियाघरों में भी रखा जाता है और उसके लिए समय से भोजन का प्रबंध उसके देख-रेख में जुटे लोगों द्वारा किया जाता है। अगर बाघ देखना हो तो जंगल में विचरण करने जाना खतरे से खाली नहीं है सबसे सुरक्षित जगह चिड़ियाघर है वहां पर जाकर हम बाघ को देख सकते हैं, वहां लोगों को इससे कोई खतरा नहीं क्योंकि वहां बाघ को बड़े पिंजरे के उस पार रखा जाता है। 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत और नेपाल ये ऐसे देश हैं जिन्होंने दुनियाभर के बाघों के लगभग दो तिहाई आबादी को प्रवास उपलब्ध कराया हैं जिनमें कुछ जंगलों में तो कुछ आबादी चिड़ियाघरों में निवास करते हैं। बाघों को लुप्त होने से बचाने में चिड़ियाघरों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है।

भारतीय संस्कृति में बाघ का महत्व

भारतीय संस्कृति में बाघ को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसे महत्व देते हुए भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है, डाक टिकटों, भारतीय नोटों और मुद्राओं में भी इसके चित्र अंकित किये गये हैं। सदियों से बाघ को साहसी, वीरता, ताक़त और प्रशस्त ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बाघ को देवी दुर्गा का वाहन भी नाना गया है। भारत के कई मंदिरों में बाघ की प्रतिमा बनाई गई है।

भारत में कुल 53 बाघ अभ्यारण्य या टाइगर रिज़र्व हैं जहाँ बाघों को रखा जाता है। यह क्षेत्र बाघ संरक्षण के लिए आरक्षित किए गए हैं। प्रोजेक्ट टाइगर अभियान के तहत टाइगर संरक्षण का काम शुरू किया गया इसके फलस्वरूप वर्तमान में सबसे अधिक बाघ भारत में ही है। पूरी दुनिया में करीब-करीब 80% बाघ भारत देश में पाए जाते हैं और पिछले कुछ सालों में इनकी संख्या में वृद्धि भी पाई गई है। भारत में कई बाघ अभ्यारण्य है जिसे नागपुर शहर विश्व से जोड़ता है इसलिए भारत के महाराष्ट्र राज्य के नागपुर शहर को टाइगर कैपिटल अर्थात भारत की बाघ राजधानी भी कहा जाता है।

बाघों की प्रजातियाँ

बाघ की एक से अधिक प्रजातियां हैं। दुनियाभर में बाघ की लगभग 11 प्रजातियां पाई जाती थी किन्तु मनुष्यों द्वारा शिकार के कारण तथा अन्य कारणों से कुछ प्रजातियां विलुप्त होती गई जिनमें ट्राइनिल, जापानी, कैस्पियन टाइगर, जैवन टाइगर और बाली टाइगर शामिल है, अब इसके लगभग 6 से 8 प्रजातियां ही पाई जाती है।

साइबेरियन बाघ या अमूर बाघ को सबसे बड़ा टाइगर माना जाता है। यह बाघ पहले कोरियाई प्रायद्वीप में भारी तादाद में रहता था लेकिन अब सिखोट-एलिन पर्वत क्षेत्र में रहा करते हैं। मनुष्यों द्वारा जंगलों को काटकर बस्ती बसाने तथा उद्योग धंधा स्थापित करने हेतु जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण ही समय के साथ बाघ व् अन्य जंगली जानवरों ने अपने आवास स्थल को बदला है।

वनों का विध्वंस केवल प्राकृतिक संकट उत्पन्न नहीं करता बल्कि जानवरों की प्रजातियों को भी विलुप्त करता है। उनका संरक्षण बहुत आवश्यक हो गया है इसलिए अब जिन जानवरों के विलुप्त होने की संभावना बनी रहती है उनकी सुरक्षा कर उनकी प्रजाति विकसित किया जा रहा है।

विश्वभर में पाए जाने वाले बाघों में से भारतीय बाघ प्रजाति को रॉयल बंगाल टाइगर कहा जाता है जो सुंदरवन में पाए जाते हैं। भारत के अलावा ये प्रजाति चीन, बांग्लादेश, बर्मा व् भूटान में अधिकता में पाया जाता है। दुनियाभर में मौजूद बाघों का लगभग 70% भाग भारत के जंगलों (चिड़ियाघरों) में रहता है भारत के बीस राज्यों में 2,967 बाघ निवास करते हैं, इस संख्या का सबसे बड़ा हिस्सा मध्य प्रदेश, उत्तराखंड एवं कर्नाटक में है।

मांसाहारी पशु - बाघ या टाइगर

बाघ मांसाहारी पशु है जो दूसरे जानवरों का शिकार करने का शौक रखता है। टाइगर की तेज़ दहाड़ सुनकर जंगल के जानवरों का दिल दहल जाता है अन्य जंगली जानवर इससे डरते हैं। कई बार भूख लगने पर भोजन तलाशते हुए यह मानवीय क्षेत्रों में भी आ जाता है अगर कोई इंसान दिखे तो उस पर भी हमला करके उसे शिकार बना सकता है।

हर मनुष्य बाघ से डरता है क्योंकि यह मानव की तुलना में अधिक शक्तिशाली और बलवान पशु है जिसके सामने साधारण मनुष्य नहीं टिक सकता। एक बाघ अपने आहार के रूप में मनुष्य के पालतू पशु गाय, बैल, बकरी, भैंस, सूअर आदि को खाता है इसके अलावा जंगली जानवरों जैसे हिरण, चीतल, जेबरा, जंगली खरगोश आदि को भी मारकर खा जाता है।

पानी में रहने वाला ताकतवर मगरमच्छ भी इसके सामने कुछ नहीं, जब मगरमच्छ पानी से बाहर निकलता है तो बाघ उस पर अचानक हमला कर देता है। लाख कोशिशों के बाद भी मगरमच्छ उसके तेज पकड़ से बच नहीं पाता और अंत में उसका शिकार बन जाता है। टाइगर अपने से दोगुने बड़े जानवर पर भी आक्रमण करके उसे मार डालता है इसलिए कई ताकतवर जानवर भी इससे दूर रहा करते हैं। इसके चंगुल से बचकर निकल पाना लगभग असंभव है क्योंकि यह अपने मजबूत जबड़े से जानवरों को पकड़कर रखता है उसके शरीर पर नुकीले दांत गड़ा देता है और तब तक नहीं छोड़ता जब तक वह दम ना तोड़ दे।

राष्ट्रीय पशु बाघ की विशेषताएं

बाघ जंगल में ताकतवर जानवरों में से एक है जो 65 किलोमीटर प्रति घंटा आराम से दौड़ सकता है। इसके एक से अधिक प्रजाति अलग अलग हिस्सों में पाए जाते हैं। रॉयल बंगाल टाइगर दिखने में अधिक सुन्दर लगते हैं।

जब यह दहाड़ता है तो उसकी आवाज लगभग 1 किलोमीटर दूर तक सुना जा सकता है, इसकी दहाड़ सुनकर अन्य जानवरों और मनुष्यों का दिल दहल जाता है। टाइगर की सूंघने की क्षमता अधिक होती है। इसका शरीर ताकतवर, गठीला व् भारी होता है इसके चार पैर जिसमें मजबूत पंजे होते हैं जो शिकार पकड़ने में सहायक होते हैं।

टाइगर के शरीर पर काले रंग की धारियां जिससे इसकी पहचान होती है। इसके मुंह में आगे की तरफ ऊपर और नीचे दो-दो नुकीले दाँत होते हैं जिसकी मदद से वो शिकार को आसानी से पकड़ लेता है। बाघ बहुत शक्तिशाली जानवर होने के साथ-साथ तेज गति से दौड़ सकता है, ऊंची छलांग लगा सकता है।

एक मांसाहारी पशु होने की वजह से यह शिकार की तलाश रात में करता है और दिन को विश्राम करता है। हालांकि यह दिन में भी अपनी भूख मिटाने के लिए जानवरों पर हमेशा पीछे से वार करता है।

बाघ अकेला शिकार करता है और यह अकेला रहा करता है और यही इसकी शान को और बढ़ा देता है। बाघ के ताकतवर, शक्तिशाली, फुर्तीले और निडर स्वभाव के कारण इसे भारत देश का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है।

राष्ट्रीय पशु बाघ के विलुप्त होने का कारण

लोगों की लगातार बढ़ती आबादी के कारण जंगलों की निर्दयता से कटाई हो रही है, जंगलों का विध्वंस कर बस्ती बसाई जा रही है, बड़े मकान व् इमारत खड़े किए जा रहे हैं इससे जंगलों में निवास करने वाले बाघ समेत अन्य जानवर बेघर हो रहे हैं।

स्वार्थ के लिए जंगलों की इस तरह से कटाई आज जानवरों के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है मानवों के अनुचित गतिविधियों के कारण पहले ही कई प्रजाति लुप्त हो चुकी है। जंगलों को नष्ट करने के चलते बाघों के जीवनशैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है कुछ अपने क्षेत्र से अलग हो गए तो कुछ भोजन के अभाव में विलुप्त हो गए।

जंगलें जिस प्रकार खत्म हो रही है वहां रहने वाले बाघ खाने-पीने की तलाश में भटकते हुए रिहायसी इलाकों में आ जाते हैं। इंसानों को जितना बाघ से खतरा होता है उतना ही बाघ को इंसानों से खतरा होता है क्योंकि कई लोग इसे नुकसान पहुंचाते हैं, कई बार यह जंगलों के आसपास बसे ग्रामीण इलाकों व् नगरों में आ जाता है, इंसानी बस्ती में आकर कई बार भागते हुए अचानक वाहनों से टकराकर एक्सीडेंट में जान गवां देते हैं। 

पहले लोग बाघों का शिकार करके उसका खाल दीवारों पर लगाते थे ये सिर्फ दिखावे या शौक के लिए किया जाता था। बाघों का तस्करी करके उसे मारा भी जाता था, इसके अंगों से कई चीजें बनते थे, निजी स्वार्थ के लिए इनका शिकार करने की वजह से ही इसकी कई प्रजाति आज विलुप्त हो चुकी है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 100 वर्षों में बाघों की लगभग 97 प्रतिशत आबादी खत्म हो गई है। 

दुनिया में लगभग 3900 जंगली बाघ है जिसमें से 2,967 बाघ केवल भारत देश में है बावजूद इसके किसी भी जानवर के प्रजाति के लिए यह संख्या संतोषजनक नहीं है क्योंकि इससे बाघ के विलुप्त होने का खतरा बना रहता है। बाघों की घटती आबादी के कारण इसका संरक्षण वर्तमान में अति आवश्यक हो गया है इसके लिए भारत ने 1973 में पहल करते हुए प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की और इसके अंतर्गत रॉयल बंगाल टाइगर को विलुप्त होने से बचाने के लिए कई कदम उठाए गए जो काफी हद तक सफल रहे।

राष्ट्रीय पशु बाघ को बचाना क्यों आवश्यक है?

मनुष्य अपने स्वार्थ के कारण जंगलों को क्षति पहुंचाकर प्राकृतिक संसाधन का हनन करने के साथ-साथ वन्य जीवों को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचा रहे हैं। पृथ्वी पर मौजूद समस्त वन्य प्राणी जिसमें की बाघ भी शामिल है उसका एकमात्र आवास-गृह जंगल ही है, परन्तु आज मनुष्य अपनी कई जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों से पेड़ काटकर ला रहा है। हमेशा से मनुष्य वन संपदा का उपयोग निजी कार्यों या स्वार्थ के लिए करता आ रहा है, यही कारण है कि आज जंगलों से आच्छादित रहने वाला क्षेत्र कम होने लगा है, वन क्षेत्रफल घटने लगा है।

यह सोचने वाली बात है कि यदि जंगल रहेंगे ही नहीं तो बाघ कहां अपना डेरा डालेंगे, जंगलें कटने से बाघों का घर-बार छिन रहा है। खाने पीने की तलाश में वे जंगलों से बाहर इंसानी बस्तियों में आने पर मजबूर हो गए हैं। कई बाघ जंगलों से बाहर आकर सड़कों में घूमते फिरते हैं इस दौरान वे एक्सीडेंट दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। इंसानी इलाका भी बाघों के लिए सुरक्षित नहीं क्योंकि वहां लोग उसे नुकसान पहुंचाते हैं तो कई बार करेंट लगने से उसकी जान चली जाती है।

पहले लोग अपने शौक के लिए बाघ का शिकार किया करते थे इसकी तस्करी होती थी इसके चलते भी इसकी आबादी बहुत कम हो गई है। अगर इसी तरह बाघों की संख्या में गिरावट आती रही तो आने वाले कुछ दशकों में धरती से टाइगर का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा इसलिए बाघों का संरक्षण करना बहुत आवश्यक है। अब बाघों का संरक्षण बहुत आवश्यक हो गया है क्योंकि यह खाद्य श्रृंखला को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और साथ ही यह भारत देश के लिए राष्ट्रीय महत्व भी रखता है। बाघ को बचाने के लिए वनों की कटाई पर पूरी तरह से रोक लगाना होगा बेहतर होगा यदि जंगलों से इंसानी दखल को खत्म कर दिया जाए, यह भी आवश्यक है की बाघ संरक्षण के लिए हर देश जागरूक हो और अपना महत्वपूर्ण व् कारगर कदम उठाए।

उपसंहार

बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है और इसीलिए टाइगर प्रोजेक्ट के अंतर्गत वन विभाग द्वारा बाघों के संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप बाघों की संख्या में गिरावट को नियंत्रित किया जाना संभव हुआ है। अब भारत में बाघों की संख्या 3,167 है, बीते कुछ सालों में इनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है लेकिन फिर भी किसी भी प्रजाति के लिए यह संख्या संतोषजनक नहीं है, इसकी संख्या में और वृद्धि होनी चाहिए। बाघों के संरक्षण में भारत की पहल के कारण, वर्तमान समय में विश्वभर के कुल बाघों में से 70% बाघ केवल भारत देश में है। 

भारत में मध्यप्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड समेत अन्य इलाकों में बाघ पाए जाते है। बाघों के निवास स्थान के लिए भारत में सुन्दर वन खूब प्रचलित है।

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