महाकवि सूरदास का साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए
महाकवि सूरदास का साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए
महाकवि सूरदास का जन्म संवत 1540 ईसवी में हुआ था ऐसा साहित्य लहरी और सूरसारावली के आधार पर माना जाता है कई विद्वानों ने सूरदास के जन्म तथा जन्मस्थान के लिए विभिन्न मत प्रस्तुत किये हैं इसलिए सटीकता से उनका जन्म कब हुआ ये कह पाना मुश्किल है। सूरदास नेत्रहीन थे कई लोग मानते हैं की वे जन्म से नेत्रहीन थे लेकिन इसमें अभी भी मतभेद है। उनकी मृत्यु संवत् 1620 ई. के आसपास माना जाता है।
महाकवि सूरदास का साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए
उत्तर: कवि सूरदास भगवान् कृष्ण के अनन्य भक्त थे उन्होंने कृष्ण पर कई रचनाएँ लिखी, कृष्ण भक्ति कवियों में सूरदास का नाम सर्वोपरि है। सूरदास ब्रजभाषा के श्रेष्ठतम कवियों में जाने जाते हैं। इन्होने हिंदी साहित्य में कृष्णा भक्ति से ओत - प्रोत कई रचनाएँ लिखी जिनमें शांत रस का समावेश देखने को मिलता है। महाकवि श्री सूरदास जी के महानतम में सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी ब्याहलो और नल-दमयन्ती सम्मिलित हैं।
सूरदास अपने रचनाओं में वात्सल्य, श्रृंगार और शांत रस को विशेष स्थान प्रदान किये हैं। इन्होने कृष्ण के बाल्यावस्था का सजीव चित्रण अपनी कल्पनाशक्ति से की है कृष्ण, गोपियाँ इन सबका उल्लेख इनके रचना में मिलते हैं।
महाकवि सूरदास का साहित्य में स्थान अद्वितीय है भक्तों में सर्वोपरि हैं। संस्कृत भाषा साहित्य में वाल्मीकि का जो स्थान है वही स्थान सूरदास का ब्रजभाषा में है, इसलिए ब्रजभाषा साहित्य में और हमारे हिंदी साहित्य में सूरदास सदैव स्मरणीय रहेंगे।
तनु तो तिहि ज्वाला जरयो, चित न भयो रस भंग॥
नंद महर सों बाबा अरु हलधर सों भैया।।
ऊंचा चढी चढी कहती जशोदा लै लै नाम कन्हैया।
दुरी खेलन जनि जाहू लाला रे! मारैगी काहू की गैया।।
गोपी ग्वाल करत कौतुहल घर घर बजति बधैया।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैया।।
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