संत रविदास पर निबंध - Sant Ravidas Essay in Hindi

नमस्कार मित्रों! इस लेख में आप संत रविदास पर निबंध - Sant Ravidas Essay in Hindi पढ़ने वाले हैं। संत रविदास जिन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय संत, कवि और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने महान विचारों से समाज को बेहतर दिशा की ओर ले जाने में अहम भूमिका निभाई।

संत रविदास पर निबंध - Sant Ravidas Essay in Hindi

संत रविदास पर निबंध - Sant Ravidas Essay in Hindi

परिचय 

संत रविदास जी एक संत, कवि, सतगुरु और समाज सुधारक थे। उनका जन्म माघ पूर्णिमा के दिन, 1376 ईस्वी में, उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर नामक ग्राम में हुआ था। संत रविदास को रैदास के नाम से भी जाना जाता है। उनके पिता जी का नाम संतोख दास और माता जी का नाम  कलसांं देवी था। उनका जन्म चमार जाति में होने की वजह से उन्हें भेदभाव का सामना भी करना पड़ा था। पर उन्होंने इन बातों पर न देते हुए निरंतर अपने कर्तव्य पथ आगे बढ़ते रहने का विकल्प चुना। उन्होंने जात पात का खंडन किया और सदैव अपने जीवन में सच के मार्ग को अपनाया। प्रेम और करुणा के पथ पर चलकर हम सच्चे मित्र बना सकते हैं और एक-दूसरे को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, संत रविदास जी से भी हमें यही सीखने को मिलता है।

बचपन से ही रविदास धार्मिक स्वभाव के थे इसलिए उन्होंने न सिर्फ कई धर्म ग्रंथों को पढ़ा बल्कि अपने जीवनकाल ग्रंथों की रचना भी की। भजन, पद, और दोहे जैसे रचनाओं से उन्होंने लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया। अलग-अलग ग्रंथों के अध्ययन से ही वे बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति बने। उनके महान विचारों ने लोगों को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया। उन्होंने जाति-पाति, और धर्म के नाम पर भेदभाव का विरोध किया और लोगों से समाज में प्रेम और एकता (मिलजुलकर) के साथ रहने का आग्रह किया।

प्रारंभिक जीवन

संत रविदास का प्रारंभिक जीवन बहुत कठिन था। वे चमार जाति से थे और उस समय जात-पात के नाम पर बहुत भेदभाव होता था, इसलिए उनको भी भेदभाव का सामना करना पड़ा। वे जूते बनाने का काम करते थे, वे पूरी लगन के साथ अपना काम किया करते थे। उनका व्यवहार बहुत अच्छा था, उनको भेदभाव का सामना करना पड़ा था लेकिन उन्होंने हर किसी के साथ अच्छा व्यवहार रखा।

वे मेहनती थे, जो भी उनके पास जूते बनवाने आता वह पूरी मेहनत से उनका कार्य पूरा करते थे। उनके परिश्रमी स्वभाव तथा श्रेष्ठ आचरण के कारण जो भी उनसे मिलता वह प्रसन्न हो जाता। अपने दयालु स्वभाव के कारण वे लोगों की सहायता करने से पीछे नहीं हटते थे। वे साधु-सन्तों से भी मिलते थे, उनकी भी सहायता करते थे और मुफ्त में जूते भी भेंट में दे देते थे। उनकी मुलाकात साधु-सन्तों से भी होती रहती थी, वे उनकी भी मदद किया करते थे और मुफ्त में जूते उपहार स्वरूप दे दिया करते थे।

साधु-संतों को मुफ्त में जूते उपहार में देने के उनके स्वभाव से उनके माता-पिता नाखुश हो गए, वे अपने घर के कामों पर ध्यान दे सकें, इसके लिए उन्होंने उनकी शादी करा दी, लेकिन फिर भी उनके स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया। इसलिए उनके पिता ने परेशान होकर उन्हें घर से बाहर निकाल दिया था। 

जब उनके माता-पिता ने रविदास और उनकी पत्नी (लोना देवी) को घर से निकाल दिया था, तब उस दौरान उन्होंने दूसरा घर बनाया और वहां अपना व्यवसाय करते रहे। वे परोपकारी स्वभाव के साथ ही धार्मिक स्वभाव वाले व्यक्ति भी थे, इसलिए वे भगवान का स्मरण और भजन करने के लिए भी समय निकालते थे।

संत रविदास जी का स्वभाव

रविदास जी का स्वभाव बचपन से ही बहुत परोपकारी और दयालु था। इस वजह से वह सबका भला सोचते और जरूरत पड़ने पर उनकी सहायता भी करते थे। उनका जूते बनाने का व्यवसाय था और वे लोगों के लिए पूरी मेहनत और लगन से जूते बनाया करते थे। वे साधु संतों का भी बहुत आदर करते थे इसलिए वह भेंट स्वरूप उन्हें जूते भेंट में दे देते थे। उनकी इसी स्वभाव के चलते उनके माता-पिता कई बार नाराज भी हो जाते थे। एक बार तो परेशान होकर उनके पिता ने उन्हें घर से ही निकाल दिया और फिर वे पड़ोस में ही नया इमारत बनाकर उसमें रहने लगे तथा अपनी व्यवसाय को जारी रखा। उन्हें ईश्वर का भजन कीर्तन और साधु संतों के साथ समय बिताना बहुत पसंद था, साधु संतों के साथ समय व्यतीत करके उन्होंने पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 

प्रेरणा और संदेश

अगर किसी व्यक्ति को भेदभाव की दृष्टि से देखा जाता है तो उसके लिए जिंदगी में आगे बढ़ाने की राह में के संघर्षों का सामना करना पड़ता है। संत रविदास जी भी चमार जाति से थे और उनको भी भेदभाव का सामना करना पड़ा था इसलिए उन्होंने जात-पात का घोर विरोध किया। उनके द्वारा रचित रचनाओं में भी उन्होंने समाज में फैले कुरीतियों का खंडन किया है।

संत रविदास ने कुरीतियों का विरोध करते हुए सभी को एकता, मेल-जोल, तथा प्रेम का संदेश दिया। धर्म के नाम पर लोग लड़ते झगड़ते रहते हैं किन्तु रविदास जी कहते थे कि भगवान के सामने तो सभी एक समान है इसलिए भेदभाव न किया जाए। उनके महानतम विचारों से शिक्षा लेकर लोग सत्य के मार्ग पर चल सकते हैं और सबके प्रति आदर व् समान की भावना जागृत कर सकते हैं। उनके विचारों में इतनी ताकत है कि यदि उनके विचारों का अनुसरण किया जाए तो समाज बेहतर दिशा में आगे बढ़ सकता है।

निष्कर्ष

उनके महान विचार समाज को बेहतर दिशा की ओर ले जाने का बल रखते हैं। उनका जन्म मोची बनाने वाले परिवार में हुआ था, उनके पिता जूता बनाते थे, इसलिए रविदास ने उनके व्यवसाय को अपनाकर स्वयं भी जूते बनाने का काम करने लगे। भेदभाव का सामना करने के बावजूद उन्होंने उस पर ध्यान नहीं दिया और निरंतर आगे बढ़ते रहे। उन्होंने अपने जीवनकाल में दरसन दीजै राम, तुम चंदन हम पानी, तुम्हारी आस, पार गया, मन ही पूजा जैसे महानतम रचनाएँ लिखी। उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों का डटकर विरोध किया और समाज को बेहतर दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया।

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